‘दी ग्रेट वॉल’ का नाम लेते ही सबसे पहले अगर कोई चीज़ हमारे ज़हन में आती है, तो वो है चाइना की दीवार। पर अगर यही सवाल हम भारत के किसी क्रिकेटप्रेमी से पूछे तो वो निसंकोच होकर बोल देगा राहुल द्रविड़। लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि राहुल से बरसों पहले किसी और का इस खिताब पर दावा था। ये वो खिलाड़ी है जिसने दुनिया के टॉप तेज़ गेंदबाजों में से एक की तेज़ रफ़्तार गेंद सीधे कनपटी पर झेली थी। ये वो खिलाड़ी है जिसे तुरंत हॉस्पिटल न ले जाया जाता, तो उसकी जान भी जा सकती थी।
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अंशुमन दत्ताजीराव गायकवाड़ वो खिलाड़ी हैं जिनको 1975-76 के क्रिकेटिंग सीज़न के लिए याद किया जाता है। अंशुमन की एक दिलचस्प बात ये थी कि वो बाउंसर की वजह से मरते-मरते बचे पर अंशुमन गायकवाड़ क्रिकेट में बाउंसर बैन करने के खिलाफ़ रहे। वो कहते थे कि ये गेंदबाजों के साथ अन्याय होगा। ऐसे में मुकाबला एकतरफा होकर रह जाएगा।
दी ग्रेट वॉल का खिताब कैसे मिला
बात 1983 की है जब पाकिस्तान के साथ जालंधर में टेस्ट खेला जा रहा था। उस समय मैच की खराब शुरुआत को संभालने की ज़िम्मेदारी अंशुमन पर गरज पड़ी थी। और उस समय वो ऐसी पारी खेल गए, जो उस ज़माने में सबसे सुस्त लेकिन मज़बूत मानी गई। चट्टान की तरह 671 मिनट तक मैदान पर टिके रहे और 436 गेंदें खेलकर 201 रन बनाए। और मैच ड्रॉ करा दिया।
मैदान से सीधा ICU का सफर
भारत की टीम वेस्टइंडीज के दौरे पर थी पर उस समय भारत को कमजोर टीम समझा जा रहा था। पहले विकेट के लिए सुनील गावसकर और अंशुमन गायकवाड़ ने 136 रन जोड़ें। दोनों ही संभलकर खेलते रहे। लेकिन वेस्टइंडीज ने भयानक बॉडीलाइन बोलिंग की और गावसकर ने इसकी अम्पायरों से शिकायत भी की।
टीम को जब ब्रेक मिला तो मैच के अधिकारी ने गावसकर की शिकायत पर ताना मारा कि तुम ऐसी बोलिंग खेल ही नहीं सकते। उस समय गुस्से में सुनील गावसकर ने अपना बल्ला ज़मीन पर फेंक दिया। कैप उछाल दी। अंशुमन गायकवाड़ ने जब उनसे पूछा कि उन्होंने इतना ओवररिएक्ट क्यों किया तो उन्होंने जवाब दिया,
“मैं यहां मरना नहीं चाहता. मुझे अपने नवजात बेटे का मुंह देखना है.”
ये उस समय की बात हैं जब बल्लेबाज़ बिना हेल्मेट के खेला करते थे। और भी कई सारे सेफ्टीगियर, जो आज के खिलाड़ियों को सहज ही हासिल हैं, वो तब उपलब्ध नहीं थे. गावसकर की बात में कितना दम था ये कुछ समय बाद साबित भी हो गया।
आग उगलती गेंदों का सामना करते हुए गावसकर आउट हो गए और अंशुमन खेलते रहे। अंशुमन की पसलियों में गेंदें लगी। फिर भी वो मैदान में डटें रहे। उसके बाद एक गेंद अंशुमन की उंगलियों पर लगी। अंशुमन दर्द से बिलबिला उठे। फ्रस्ट्रेशन में उन्होंने होल्डिंग की तरफ देख के कुछ इशारा किया। इसने होल्डिंग को और भड़का दिया। और फिर आई वो घातक गेंद।
आने वाली गेद एक भयानक बाउंसर थी। वो गेंद सीधे अंशुमन के कान पर आ लगी। वो चारो खाने उस समय चित्त हो गए। अंशुमन को तुरंत मैदान से बाहर ले जाया गया। उसके बाद अंशुमन 48 घंटे तक ICU में रहे। जिसके बाद अंशुमन की दो बार कान की सर्जरी हुई। आज तक उनको सुनने में दिक्कत महसूस होती है।