“म्हारी छोरियां छोरों से कम है कह?” ये डायलॉग तो सुना ही होगा। फिल्म दंगल के बाद महिलाओं की कुश्ती को एक नए रूप से देखा गया। उनके खेल पर प्रकाश डाला गया। फोगट बहनों पर बनी फिल्म ने ये सबित किया कि छोरियां भी छोरों से कम न है। गीता फोगट ने भारत को राष्ट्रमंडल खेलों में सोना जीतकर दिया। महिला कुश्ती में भारत के लिए पहला सोना गीता ने ही जीता इस जीत के बाद केवल एक दिन उनकी फोटो और खबर अखबार के पन्नों पर सिमटकर रह गई थी, लेकिन फिल्म दंगल के आने के बाद दुनिया के हर कोने में उनका नाम पहचानने जाने लगा। ये पहचान उनको कड़ी मेहनत से मिली।
इसे भी पढ़े-पाक को चटाई धूल
15 दिसम्बर 1988 को हरियाणा के छोटे से गांव बलाली में फोगट परिवार में जन्मी गीता फोगट। कठिन परिस्थितियों को आसान कैसे बनाए वो गीता ने सभी को बताया। लडका लड़की के भेदभाव को इस पहलवान छोरी ने गोल्ड जीतकर बताया। कम उम्र में पहलवानी के दाव पेंच सिखकर इस छोरी ने दिखाया की परिस्थितियां कुछ भी हो नामुमकिन कुछ नहीं है। जो लोग छोरी को बोझ समझते थे उसका सटीक उदाहरण महावीर सिंह फोगट ने दिया कि कैसे बेटिंयां बोझ नहीं बस थोड़ा साथ और मेहनत उनको आसमान से सोना लाने के लिए चाहिए।
In India: Politics & Entertainment
जमाने को झूठा साबित करते हुए गीता फोगट ने दिखा दिया कि किसी भी क्षेत्र में लड़कियां लड़को से पीछे नहीं है। गीता ने बचपन में ही पुरुष पहलवानों से लड़ना शुरू कर दिया था क्योंकि वहां कोई महिला पहलवान नहीं थी। गीता फोगाट ने कभी भी पहलवान बनने का सपना नहीं देखा था, बल्कि वह उनके पिता की इच्छा थी जो उन्होंने धीरे-धीरे पसंद करना शुरू कर दिया और बाद में उनका जुनून बन गया और अपने इस जुनून को गीत ने लड़कियों के सपनों को सच करने का एक रास्ता दिखाया।