खेलपत्र नमस्कार। देश को पहली बार 18वें एशियाई खेलों में सेपकटकरा में पदक दिलाने वाले एथलीट हरीश कुमार ने अपना जीवन यापन करने के लिए फिर से चाय बेचने में मजबूर है। हरीश रोजाना 6 घंटे प्रैक्टिस करने के बाद वह दिल्ली में मजनू का टीला स्थित अपने पिता की चाय की दुकान में काम करते हैं।
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बता दें कि उनके पिता ऑटो रिक्शा भी चलाते है। हरीश एशियाई खेलों में भारत को सेपकटकरा में पहली बार कांस्य पदक जीताया था। लेकिन अभी तक उनको सरकारी नौकरी नहीं मिली है।
हरीश का कहना है कि मेरे परिवार में लोग ज्यादा है और कमाई करने वाले कम लोग है। पापा ऑटो चलाने गए, तो दुकान पर मैं आ जाता हूं। मैं प्रतिदिन दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक अभ्यास करता हूं। अच्छे भविष्य के लिए सरकारी नौकरी की तलाश में हूं ताकि घर वालों की मदद कर संकू।
हरीश ने बताया कि साल 2011 में उन्होंने सेपकटकरा खेलना शुरु किया। कोच हेमराज ने मुझे इस खेल में लेकर आए। मैं पहले टायर के साथ खेलता था, लेकिन जब उन्होंने मुझे देखा तो स्पोट्रर्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया लेकर गए।
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जिसके बाद मुझे खेलने के लिए किट दी गई और मासिक भत्ता भी मिलने लगा। हरीश की मां का कहना है कि उन्होंने काफी संघर्षों से अपने बच्चों को बड़ा किया है। मेरे पति के साथ मेरा बेटा भी काम करता है। परिवार चलाने की जिम्मेंदारी हरीश और उनके पिता पर है।